भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय हिंदी में || Dr Rajendra Prasad in hindi

डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सारण जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जीरादेई में प्राप्त की और फिर पटना कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की।

राजेंद्र प्रसाद ने 1916 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने 1922 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही और उन्होंने कई बार जेल में समय बिताया।

भारतीय संविधान के निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में, राजेंद्र प्रसाद ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 26 जनवरी, 1950 को वे भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने और उन्होंने 1962 तक इस पद पर कार्य किया।

डॉ राजेंद्र प्रसाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और देशभक्त थे। उन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

TABLE OF CONTENTS

Dr Rajendra Prasad Biography In Hindi

नामडॉ. राजेंद्र प्रसाद
जन्म3 दिसंबर 1884
जन्म स्थानबिहार के जीरादेई गांव
मृत्यृ28 फरवरी 1963
मृत्यृ स्थानपटना, बिहार
पिता का नाममहादेव सहाय
माता का नामकमलेश्नरी देवी
वैवाहिक स्थितिविवाहित
पत्नी का नामराजवंशी देवी
बच्चेमृत्यृंजय प्रसाद
शिक्षाकोलकाता यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएट, लॉ में पोस्ट ग्रेजुएशन (LLM), एवं लॉ में डॉक्ट्रेट
पुरस्कारभारत रत्न
भाषासरल, सुबोध और व्यवहारिक

डॉ राजेन्द्र प्रसाद जन्म व परिवार

डॉ राजेन्द्र प्रसाद का परिवार एक मध्यवर्गीय परिवार था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। राजेन्द्र प्रसाद अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।राजेन्द्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय एक विद्वान और समाजसेवी थे। वे एक संस्कृत विद्वान थे और उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। वे समाज सेवा के कार्यों में भी सक्रिय थे।राजेन्द्र प्रसाद की माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। वे अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करने के लिए कड़ी मेहनत करती थीं।

इसके अलावा उनके परिवार में इनके तीन बड़े भाई और एक बड़ी बहन थीं। उनके बड़े भाई श्यामसुंदर प्रसाद, रामाश्रय प्रसाद और विनोद कुमार प्रसाद थे। उनकी बड़ी बहन का नाम चम्पा देवी था।राजेन्द्र प्रसाद के परिवार ने उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके माता-पिता ने उन्हें एक अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए। उनके बड़े भाई-बहनों ने भी उनके जीवन में हमेशा उनका साथ दिया।

राजेन्द्र प्रसाद के परिवार से उन्हें एक मजबूत नैतिक आधार मिला। उन्होंने अपने परिवार से देशभक्ति और समाज सेवा की भावना सीखी।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद की शिक्षा

डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने 5 वर्ष की उम्र से ही पढना शुरू कर दिया था जब ये 5 वर्ष के थे तो इनके परिवार के प्रथा के अनुसार इन्हें मौलवी के पास पढने के लिए भेजा जाता था जंहा पर इन्होने उर्दू और फारसी जैसी भाषा सीखी उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के स्कूल में प्राप्त की। इसके बाद ये पटना के टी के घोष अकैडमी में जाने लगे और वंही से अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद इन्होने कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए प्रवेश परीक्षा दी ये बचपन से ही पढने में

अच्छे थे इसी कारण यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा में इनके काफी अच्छे अंक आये अच्छे अंक आने के कारण इन्हें यूनिवर्सिटी की तरफ से हर महीने 30 रुपये की स्कालरशिप मिलने लगी। कलकत्ता यूनिवर्सिटी से इन्होने अपने ( B.A ) ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की इसके बाद 1902 में प्रसाद जी ने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला इस कालेज में इनके शिक्षको में महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु और माननीय प्रफुल्ल चन्द्र राय थे यंहा पर ये विज्ञान को छोड़कर कला क्षेत्र से MA की डिग्री प्राप्त की।

MA की डिग्री प्राप्त करने के बाद राजेन्द्र प्रसाद ने लंदन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया। उन्होंने 1915 में कानून की डिग्री हासिल की और स्वर्ण पदक भी हासिल किया। कानून के क्षेत्र में इन्होने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की इसके बाद ये भारत आ गए और कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत करने लगे

राजेन्द्र प्रसाद की शिक्षा के प्रमुख बिंदु

  • प्रारंभिक शिक्षा: जीरादेई के स्कूल में
  • माध्यमिक शिक्षा: छपरा के जिला स्कूल में
  • उच्च शिक्षा: पटना कॉलेज से स्नातक, लंदन विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री
  • सम्मान और पुरस्कार: लंदन विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक, पटना विश्वविद्यालय से मानद उपाधि

स्वतंत्रता संग्राम और डॉ राजेंद्र प्रसाद

डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना कदम 1915 के बाद रखा जब ये कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत कर रहे थे तभी इनके बड़े भाई महेंद्र प्रसाद ने इन्हें स्वदेशी आन्दोलन में जुड़ने को कहा अपने बड़े भाई के कहने पर ये स्वदेशी आन्दोलन में जुड़ गए और वह सतीश चन्द्र मुखर्जी और बहन निवेदिता द्वारा संचालित “डॉन सोसाइटी” से भी जुड़े

इसके बाद 1917 में इनकी मुलाकात गाँधी जी से हुई ये गाँधी जी के विचारधारा से काफी प्रभावित हुए और जब 1919 में गाँधी ने स्कूल को कालेजो का बहिष्कार करने के लिए सविनय आन्दोलन शुरू किया तो ये अपनी वकालत की नौकरी छोड़ कर आन्दोलन में शामिल हो गए इसके बाद इन्होने गाँधी जी के साथ कई आन्दोलन में भाग लिया और

चंपारण आन्दोलन तक ये गाँधी जी एक वफादार साथी बन गए थे गाँधी जी के साथ रहने से इनके अन्दर काफी बदलाव हुए इन्होने अपने पुराने और रूढिवादी विचारधारा का त्याग किया 1931 में जब कांग्रेस ने अंग्रेजो के खिलाफ पूरे भारत में आन्दोलन शुरू किया तो इन्होने ने भी आन्दोलन में भाग लिया जिस कारण इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।

1934 में ये कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गए और इसके बाद ये कई बारे अध्यक्ष बने और अपनी सेवा दी 1942 में जब भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ तो इन्होने ने भी आन्दोलन में भाग लिया जिस कारण ये अंग्रेजो द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए और इन्हें नजरबन्द रखा गया।

सविंधान निर्माण में डॉ राजेन्द्र प्रसाद का योगदान

देश को आजादी मिलने से पहले ही सविंधान सभा का गठन हो गया था जिसके अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद बनाये गए और जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो इन्होने डॉ भीमराव अम्बेडकर के साथ मिलकर सविधान निर्माण ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इनके ऊपर संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी। डॉ. प्रसाद ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि संविधान एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी दस्तावेज बने जो सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे।

डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति

जब 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू किया जाना था और देश को गणराज्य घोषित किया जाना था उसके एक दिन पहले 25 जनवरी को इनकी बहन भागवंती का निधन हो गया लेकिन ये 26 जनवरी 1950 को जब भारत का सविंधान लागू हो गया और देश को एक गणराज्य घोषित कर दिया गया तो ये अपने घर गए और अपनी बहन का दाहसंस्कार किया। जब 26 जनवरी 1950 को देश का सविंधान लागू हुआ तो इन्हें देश का राष्ट्रपति बनाया गया ये 2 बार भारत के राष्ट्रपति बने और 12 वर्षो तक देश को अपनी सेवा दी और 1962 में अवकाश लिया।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद को प्राप्त पुरुष्कार


डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को अपने जीवनकाल में कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। इनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार निम्नलिखित हैं:

  • भारत रत्न (1962)
  • लंदन विश्वविद्यालय से मानद उपाधि (1948)
  • काशी हिंदू विश्वविद्यालय से मानद उपाधि (1936)
  • मुंबई विश्वविद्यालय से मानद उपाधि (1935)
  • कोलकाता विश्वविद्यालय से मानद उपाधि (1934)
  • पटना विश्वविद्यालय से मानद उपाधि (1932)
  • गांधी शांति पुरस्कार (1960)

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्हें यह पुरस्कार उनके जीवन भर के योगदान और सेवाओं के लिए दिया गया था।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को प्राप्त अन्य पुरस्कारों में लक्ष्मी विलास पटेल पुरस्कार, राष्ट्रपति का पदक, गांधी जयंती पुरस्कार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सर्वोच्च पुरस्कार शामिल हैं।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को प्राप्त ये पुरस्कार उनके देश के प्रति उनके अद्वितीय योगदान और सेवाओं की मान्यता हैं। वे एक महान नेता और देशभक्त थे, जिन्होंने भारत को एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश बनाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद की मृत्यु

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का निधन 28 फरवरी, 1963 को पटना में हुआ था। वे 78 वर्ष के थे। उनकी मृत्यु का कारण हृदय गति रुकना था।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अपने जीवन के आखिरी महीने पटना के निकट सदाकत आश्रम में बिता रहे थे। उनकी तबीयत पिछले कुछ महीनों से खराब चल रही थी। 28 फरवरी, 1963 की रात को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और उन्होंने 10:10 बजे अंतिम सांस ली।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की मृत्यु भारत के लिए एक बड़ी क्षति थी। उन्हें भारत के एक महान नेता और देशभक्त के रूप में याद किया जाता है। उनकी मृत्यु पर भारत सरकार ने तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया। और इनकी याद में राजेन्द्र स्मृति संग्रहालय’ का निर्माण कराया गया. 

डॉ राजेंद्र प्रसाद की प्रमुख रचनाएं

डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक कुशल लेखक भी थे। उन्होंने कई पुस्तकों और लेखों की रचना की। उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं:

  • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास (1938)
  • गाँधीवाद (1946)
  • हिंदू धर्म (1948)
  • भारत का संविधान (1950)
  • मेरे जीवन के चरण (1957)
  • बापू जी के कदमों में (1959)
  • मेरी यूरोप यात्रा (1960)
  • संस्कृत का अध्ययन (1961)
  • चंपारण में महात्मा गांधी (1963)
  • खादी का अर्थशास्त्र (1964)

डॉ. राजेंद्र प्रसाद की भाषा शैली सरल, सुबोध और व्यावहारिक है। उन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी और बिहारी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने ग्रामीण कहावतों और ग्रामीण शब्‍दों का भी प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में कहीं भी बनावटीपन की गंध नहीं आती।

उनकी रचनाओं में उनके विचारों और आदर्शों की झलक मिलती है। वे एक देशभक्त और सामाजिक न्याय के समर्थक थे। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से स्वतंत्रता, लोकतंत्र और समानता के मूल्यों को बढ़ावा दिया।उनकी रचनाएं भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। वे स्वतंत्रता आंदोलन और भारत के निर्माण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय हैं।

डॉ राजेंद्र प्रसाद की भाषा शैली

डॉ. राजेंद्र प्रसाद की भाषा शैली विशेष रूप से सरल और सुजबुज थी। ये हिंदी उर्दू फारसी संस्कृत आदि भाषाओ के ज्ञानी थे।इन्होने अपने संवादों और लेखों में सरल शब्दों का प्रयोग किया और अपने संवाददाताओं को सहजता से अपनी बात समझाई है। इनकी भाषा में अपनेपन की एक खास सुंदरता दिखती है इन्हें संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति भी गहरा प्यार था, जिसका प्रतिनिधित्व उनकी भाषा में संस्कृत शब्दों का प्रयोग से दिखता है।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद से जुड़े कुछ सवाल और जवाब

डॉ राजेंद्र प्रसाद किस युग के लेखक थे?

आधुनिक काल (शुक्ल युग)

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का पूरा नाम क्या है?

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का पूरा नाम डॉ. राजेंद्र प्रसाद सहाय है।

राजेंद्र प्रसाद का जन्म कब हुआ था?

3 दिसंबर 1884

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म कहां हुआ?

बिहार के जीरादेई गाँव में

डॉ राजेंद्र प्रसाद के पिता का नाम क्या था?

महादेव सहाय

डॉ राजेंद्र प्रसाद की माता का नाम क्या था?

कमलेश्वरी देवी

डॉ राजेंद्र प्रसाद की पत्नी का नाम क्या था?

 राजवंशी देवी

डॉ राजेंद्र प्रसाद के बेटों का नाम क्या था?

मृत्युंजय प्रसाद (1904-1995)
धनंजय प्रसाद (1906-1991)
जनार्दन प्रसाद (1910-1985)

डॉ राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु कब और कैसे हुई?

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निधन 28 फरवरी 1963 को पटना में हुआ था। वे 78 वर्ष के थे। उनकी मृत्यु का कारण हृदय गति रुकना था।